क्यों निकल पड़ा मैं, इस ज़िन्दगी की डगर नहीं था मालूम, है यह अंतहीन लंबा सफर जाने ढूंढ़ता किसे मैं, ज़िन्दगी के हर मोड़ पर कहाँ है मंज़िल, कितना अंतहीन लंबा सफर
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